एएम भट्ट, मौसम विज्ञानी-बी, मौसम कार्यालय अंबिकापुर
प्राचीन वैदिक काल 3000 ईसा पूर्व के सभी मूल दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रंथों, वेद-वेदांगों, उपनिषदों से ले कर अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थों में मौसम, जलवायु, खगोल, पृथ्वी, अंत: भु प्रकृति और बाह्य आकाश का समुचित दर्शन मिलता है। हजारों वर्ष पूर्व में ही भारतीय वेत्ताओं ने ग्रहों के सूर्य कक्षीय परिभ्रमण और परिसंचरण, विभिन्न ग्रहों की प्रकृति, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, समुद्रीय हलचल और इससे होने वाले मेघ निर्माण, वृष्टि, मेघ चमक और गर्जन जैसी प्राकृतिक घटनाओं के मुख्य कारकों का समुचित अध्ययन कर लिया था। भूडोल से ज्वालामुखी विस्फोट तक कि घटनाओं से पृथ्वी के भौगोलिक निर्माण, इसमें भविष्य के संभावित परिवर्तन के कारकों तक कि भविष्यवाणी भी कर सकने की विधियां विकसित हो चुकी थी। 500 ईसवी में वाराहमिहिर रचित वृहत्संहिता, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का महाकाव्य मेघदूत आदि में वर्णित मौसम और जलवायु के मूल आयाम के समावेश के बिना वर्तमान आधुनिक मौसम प्रणाली का वैज्ञानिक रूप कदापि संभव नहीं होता। मध्य युगीन इतिहास में घाघ-भण्डरी हों या भक्तिकालीन कवि वर्ग हों, सभी ने अपनी अपनी रचनाओं में मौसम और प्रकृति को विशेष रूप से रेखांकित किया है।
आधुनिक मौसम विज्ञान
विज्ञान के युग का उदय 16 वीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। 17 वीं शताब्दी में वायुदाब मापन, वायु ताप मापन, सामुद्रिक और स्थलीय वायु की प्रकृति, मेघों की प्रकृति आदि को आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों के साथ परिभाषित किया जाना प्रारम्भ हो चुका था। इसी कालखण्ड में तापमापी, वायुदाबमापी, वायु गतिमापी आदि मूल उपकरण आविष्कृत किये जा चुके थे। प्राचीन विधाएं जो समय के प्रतिकूल प्रवाह में कहीं शिथिल पड़ चुकी थीं उन्हें आधुनिक वैज्ञानिकों ने नए सिरे से प्रतिपादित करना प्रारम्भ कर दिया था। या कहें कि 17वीं शताब्दी में मौसम गतिविधियों की निगरानी की सटीक नींव स्थापित की गई। आप देखेंगे कि यही कालखण्ड था जब भारत में ईस्ट-इंडिया कंपनी स्थापित हुई थी। चूंकि इंग्लैंड से भारत की व्यापारिक यात्रा करनी हो या फिर भारत में प्रवास करना हो, इसके लिए उन्हें यहां के जलवायु का ज्ञान एक आवश्यक तत्व था। लिहाजा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में मौसम और जलवायु के अध्ययन हेतु अपने केंद्र स्थापित करना प्रारंभ किया था। ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात, तूफान एवं अन्य प्राकृतिक व्यवधानों के अध्ययन निमित्त सन 1785 में कोलकाता, 1796 में चेन्नई, 1804 में मुंबई में अपने मुख्य वेधशाला स्थापित किये। 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध  तक तो भारत के विभिन्न प्रांतों में ब्रिटिश मौसम केंद्र के आधीन मौसम वेधशालाएं स्थापित हो चुकी थी।
15 जनवरी 1875 को हुई स्थापना
19 वीं शताब्दी के मध्य में भारत में कुछ मुख्य प्राकृतिक विपदाएं आईं। 1864 में कोलकाता एक विनाशकारी ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात से छिन्न-भिन्न हो गया। इसके बाद 1866 और 1871 में देश में भीषण सूखा पड़ा था।  इस प्रकार की घटनाओं ने तात्कालिक भारत सरकार को मौसम निगरानी को नए सिरे से प्रतिपादित करने को बाध्य कर दिया था और तब 15 जनवरी 1875 को भारत सरकार ने ‘भारत मौसम विज्ञान विभागÓ की स्थापना की। देश के सभी मौसम संबंधी कार्यों को एक केन्द्रीभूत प्राधिकरण के अंतर्गत व्यवस्थित किया गया। इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थापित किया गया और एचएफ ब्लैनफोर्ड इसके प्रथम रिपोर्टर नियुक्त किए गए। बाद में मुख्यालय शिमला, पूना और अब दिल्ली में स्थानांतरित किया गया। बृहत्संहिता का श्लोकांश ‘आदित्याय जायते वृष्टिÓ को विभाग का ध्येय वाक्य निर्धारित किया गया। आज भारत मौसम विज्ञान विभाग ने एक लंबी यात्रा के बाद पूरे देश भर में अपनी वेधशालाओं की स्थापना और मौसम निगरानी करता हुआ 150 वर्ष पूर्ण कर रहा है।

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