अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद उत्तर छत्तीसगढ़ को स्वास्थ्य, शिक्षा कनेक्टिविटी के साथ प्रदेश के इकलौते बायोटेक लैब की सौगात मिली। बायोटेक लैब में साइंटिस्ट प्रशांत शर्मा के इनोवेशन ने सरगुजा को नई पहचान दिलाने में बड़ा योगदान दिया है। इन्होंने ई बॉल, कंपोस्ट का कल्चर, वर्मी वास जैसे अविष्कार देकर सरगुजा और प्रदेश का नाम रोशन किया। इतना ही नही बायोटेक लैब के माध्यम से प्रदेश में सबसे पहले किसानों को ऑयस्टर मशरूम की खेती का प्रशिक्षण देकर, बीज तैयार कर उन्हें मशरूम की खेती से लाभ पहुंचाने में मदद की। वर्मी कंपोस्ट में उच्च गुणवत्ता वाले केचुओं का उपयोग, स्वाइल परीक्षण कर किसानों को उन्नत सलाह और भी कई काम सरगुजा में इस माध्यम से किए गए।
साइंटिस्ट प्रशांत शर्मा द्वारा किए गए कार्यों में दो काम काफी बड़े हैं, पहला कंपोस्ट कल्चर जिसकी वजह से केंद्र सरकार से अंबिकापुर नगर निगम को बेस्ट इनोवेशन का खिताब मिला और दूसरा अविष्कार है ई-बॉल जिसने देश भर में धूम मचा दी है। तालाब या नाली में गंदे पानी को कम खर्चे में बेहद आसानी से साफ कर इस बॉल ने सबको हैरत में डाल दिया। नतीजा ये हुआ कि देश भर की 200 से अधिक नगरीय निकायों ने अपने शहर के तालाब इनसे साफ कराए हैं। जी 20 समिट के दौरान जिन शहरों में समिट होना था वहां के तालाबों को ई-बॉल टेक्नोलॉजी से ही साफ किया गया था। फिलहाल इन्होंने बस्तर के दलपत सागर और रांची के बड़ा तालाब को भी साफ करने का जिम्मा उठाया है।
बैक्टीरिया और फंगस का मिश्रण है ई-बाल
ई बॉल लाभदायक बैक्टीरिया और फंगस का मिश्रण है, इसमें टी 64 और एलएबी 2 बैक्टीरिया का उपयोग किया गया है। यह किसी भी पीएच और 45 से ज्यादा तापमान पर भी काम करता है। बॉल में मौजूद सूक्ष्मजीव नाली और तालाब के वॉटर में जाकर ऑर्गेनिक वेस्ट से पोषण लेना शुरु कर संख्या बढ़ाते हैं, जिससे पानी साफ हो जाता है। एक ई-बाल लगभग 150 मीटर लंबी नाली के लिए प्रभावी होती है। एक बार ई बॉल उपयोग करने के बाद 90 दिन तक वह प्रभावी होता है। ई-बॉल के उपयोग से बार-बार नाली जाम और नाली से आने वाली दुर्गंध से छुटकारा मिल रहा है।
स्वच्छ भारत मिशन अंबिकापुर के नोडल का कहना है
स्वच्छ भारत मिशन अंबिकापुर के नोडल अफसर रितेश सैनी बताते हैं कि सरगुजा में बायोटेक लैब खुलने से कई शासकीय विभागों को इसका फायदा हुआ। पहले जब हम लोग कम्पोस्टिंग पर काम करते थे, तो किस तरह के बैक्टीरियल कल्चर में काम करना है, मिट्टी कैसी होगी, खाद कैसा होगा, ये पता नहीं था। तकनीकि का अभाव था। कोई अनुभवी व्यक्ति यहां नहीं थे, लेकिन इस लैब में जब साइंटिस्ट की पदस्थापना हुई, तो बायोटेक लैब को नई पहचान मिली। उन्होंने बताया कि अंबिकापुर में जब हम लोगों ने डोर टू डोर कचरा कलेक्शन शुरू किया, तो किस तरह से कचरे को जल्दी से जल्दी खाद में बदलना है, इसके लिए इन्होंने ही बैक्टीरियल कल्चर तैयार कर के दिया, जिसका उपयोग होम कम्पोस्टिंग के लिए भी किया जा रहा है। इसके अलावा शहर के तालाब, नाले या जहां पानी रुकता है, उसको साफ करने के लिए इन्होंने ई बॉल टेक्निक दी, इसका भी उपयोग हम लोगों ने किया जिसके परिणाम सकारात्मक देखने को मिले।
छत्तीसगढ़ का पहला बायोटेक लैब 2002 में हुआ स्थापित
साइंटिस्ट डॉ. प्रशांत बताते हैं राज्य स्थापना के बाद 2002 में यहां पर छत्तीसगढ़ का पहला बायोटेक लैब स्थापित किया गया, इसके 1 साल बाद 2003 में मेरी यहां पर पदस्थापना हुई। शुरु में जब यहां काम शुरू हुआ तो सबसे बड़ा चैलेंज था, कृषि और उद्यानिकी क्षेत्र में प्रशिक्षण और काम करने का। सबसे पहले हम लोगों ने कृषि अपशिष्ट पर काम शुरू किया और छत्तीसगढ़ में सबसे पहले ऑयस्टर मशरूम की खेती शुरू कराई गई, इसके बाद किसानों को उन्नत पैदावार के लिए स्थापना से अब तक 24 से 25 हजार किसानों की जमीन का मिट्टी परीक्षण कर उनको खेती और मिट्टी के अनुसार सलाह दी गई। जब नगर निगम में कचरा के निपटान की बात आई तो लैब के माध्यम से टेक्निकल सहयोग कर कल्चर उपलब्ध कराया गया। घर के आर्गेनिक कचरे या जहां कचरा लेने रिक्शा नहीं जा सकते ऐसे स्थानों में ही कचरे को खाद में बदलने के लिए ये कल्चर तैयार किया गया। 2017 में इसके लिए नगर निगम को बेस्ट इनोवेशन अवार्ड केन्द्र सरकार से मिला, इसके बाद तालाब और नालियों को साफ करने के लिए ई-बॉल का निर्माण और इसका अंतरराष्ट्रीय पेटेंट करवाकर देश भर के कई तालाबों को साफ करने का काम किया जा रहा है।

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