शासन के दावे केवल कागजों में ही पूर्ण रूप से हो रहे सफल

बिश्रामपुर। अधिकारियों की उदासीनता की वजह से नौनिहाल बच्चों को क्लास रुम के अलावा अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में अपना भविष्य गढ़ने विवश होना पड़ रहा है। शिक्षा स्तर को बेहतर बनाने शासन स्तर पर भले ही लाख प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन धरातल पर वास्तविकता कुछ और ही बयां कर रही है। विभागीय अधिकारियों द्वारा सतत मॉनिटरिंग न किए जाने की वजह से ही ऐसी स्थिति देखने व सुनने को मिल रही हैं। गौरतलब है कि नगर पंचायत बिश्रामपुर क्षेत्र अंतर्गत वर्षों पुरानी ग्लोब स्कूल प्रांगण में स्थित शासकीय प्राथमिक बालक पाठशाला भवन की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है। यहां पर यूं तो कहने को तीन कमरे हैं लेकिन प्रधान पाठक को छोड़ दें तो महज दो कमरे में हो कक्षा पहली से पांचवीं तक के नौनिहाल बच्चों को बैठकर अपना भविष्य गढ़ने विवश होना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि यहां पर बच्चों की दर्ज संख्या तो 62 है लेकिन अतिरिक्त कमरे के अभाव में पहली से तीसरी तक की कक्षाएं एक कमरे में और चौथी व पांचवीं कक्षा का संचालन एक कमरे में करके शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई जा रही है। यहां वर्षों पुरानी भवन होने की वजह से कक्षाओं के अधिकांश एडवेस्टर सीट क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और बारिश के दिनों में बच्चों को पानी में बैठकर पढ़ाई करने मजबूर होना पड़ जाता है। कमरों के खिड़की व दरवाजे भी काफी पुराने होने की वजह से कमजोर हो चुके हैं। बावजूद इसके कुंभकर्णीय नींद सो विभागीय अधिकारियों द्वारा उक्त विद्यालय का मरम्मत कार्य तक नहीं कराया जा सका है। बताया जा रहा है कि विद्यालय भवन की जर्जरता की वजह से हमेशा किसी अनहोनी का खतरा बना रहता है। यहां पर बच्चों के रसोई व शौचालय की स्थिति भी काफी दयनीय हो चुकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि शासन द्वारा स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार हेतु प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन मैदानी स्तर पर वास्तविकता कुछ और ही दिखाई पड़ती है। कमरे के अभाव में एक साथ कई क्लास का संचालन होने से यहां की पढ़ाई की गुणवत्ता को आसानी से समझा जा सकता है। यहां पर ऐसा प्रतीत होता है कि विभागीय अधिकारी मानो कोरमपूर्ति करके अपने जिम्मेदारी से इतिश्री कर ले रहे हैं।
सिस्टम पर उठ रहे सवाल
लोगों का कहना है कि यहां पर यूं तो 62 बच्चों पर प्रधान पाठक समेत तीन शिक्षकों की पदस्थापना की गई है लेकिन कुछ ऐसे भी विद्यालय हैं जहां मात्र 7 बच्चों पर 2 शिक्षक की पदस्थापना की गई है। अब इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि जिले में शिक्षा गुणवत्ता को लेकर कितना बेहतर तरीके से क्रियान्वयन किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में जिले की शिक्षा व्यवस्था के सिस्टम पर भी अब सवाल खड़े होने लगे हैं। कुछ पाठशाला में तो इस सत्र में कक्षा पहली में एक भी बच्चों की दर्ज संख्या तक नहीं है, अब उक्त पाठशाला में नए सत्र में कक्षा दूसरी में कितने बच्चे होंगे यह भी एक बड़ा सवाल है।

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