बिश्रामपुर। सरगुजा की संस्कृति और विरासत का बृहद उदाहरण दतिमा के लाठीडांड में अनंत चतुर्दशी के अवसर पर आयोजित करमा पर्व पर देखने को मिलता है। बताया जा रहा है कि आजादी के समय से ही यहां पर प्रतिवर्ष करमा पर्व हर्षोल्लास पूर्वक मनाते हुए लोगों द्वारा करमा खेला जाता है। आधुनिक युग में भी यहां की पुरानी विरासत जीवित है। बताया जा रहा है कि दतिमा के लाठीडांड में प्रतिवर्ष प्राचीन परंपरा के अनुसार आसपास क्षेत्र के करीब 30-40 किलोमीटर दूर से ग्रामीण यहां पर पहुंचकर भव्य करमा खेल में शामिल होकर अपने-अपने कला का प्रदर्शन करते हैं। इसी तारतम्य में 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के अवसर पर भी लाठीडांड में दूर दराज इलाके से लोग बड़ी संख्या में पहुंचकर करमा खेल में हिस्सा लिए।बताया जा रहा है कि दतिमा गांव का एक लोहार परिवार करमा पूजा करता था। घर में करम पूजा व करम डांड गाड़कर पूजा किया जाता था व अनन्त चतुर्दशी के दिन घर में पारण किया जाता था। पारण के दिन ढोल व मादर की थाप पर सब लोग नाचते गाते हुए खुशियां मनाते थे।घर में प्रति वर्ष लोगों की बढ़ती भीड़ की वजह यहां बहुत से आदिवासी व गांव के लोग जुटने लगे थे। ज्यादा भीड़ होने के कारण करमा को लाठीडांड मैदान में ले जाया गया। यहां का करमा धीरे धीरे मेला का रूप लेते गया और देखते ही देखते अनंत चतुर्दशी के दिन हजारों की संख्या में यहां पर लोग पहुंचने लगे।
करमा पर्व पर यहां दोपहर 2 बजे से मांदर की थाप शुरू होती है और सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस और समिति वालों के द्वारा करमा को शाम 7 बजे तक बंद करा दिया जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से यहां पर बिश्रामपुर व करंजी पुलिस मुस्तैद रहती है।