अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के पूर्व शिक्षकों से किया सम्मान के बहिष्कार का आह्वान
अंबिकापुर। पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर शिक्षकों का सम्मान होगा। इस सम्मान को लेकर शिक्षक क्या करेंगे, जिन्हें पूरे वर्ष भर निकम्मा, मुफ्तखोर साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई हो। शिक्षक को दूसरे विभाग के लोग अध्यापन कार्य करने की चेतावनी देते हों, टिप्पणियां करते हों, रिपोर्टिंग करते हों और शिक्षक के बेहतर प्रयासों को नकार देते हों। दूसरे विभागों के कार्य शिक्षकों से जबरन करवाए जाते हों। लक्ष्य प्राप्ति के लिए जिम्मेदार ठहराया गया हो। विद्यार्थियों के अधूरे, अपूर्ण दस्तावेजों, छात्रवृत्ति कार्य अपूर्ण होने पर उन्हें जिम्मेदार ठहराकर वेतन रोक दिया गया हो। इन हालातों के बीच शिक्षण कार्य में लगे शिक्षकों से शिक्षिका गौरी शर्मा ने आग्रह किया है कि शिक्षक दिवस के दिन एक भी शिक्षक सम्मान, पुरस्कार लेने समारोह में न जाएं और न ही किसी भी प्रकार का पुरस्कार, सम्मान स्वीकार करें, ऐसे आयोजन का बहिष्कार करें।
शिक्षकों की वेदना का उल्लेख करते हुए गौरी शर्मा ने कहा है कि वर्ष भर की गतिविधियों को देखें तो शिक्षकों को भीषण गर्मी में नन्हे बच्चों को साथ लेकर समर कैंप लगाने मजबूर किया गया। अलग-अलग विभागों के अधूरे कार्य, सर्वे आदि कार्य को पूर्ण कराया गया। अध्यापन कार्य के अतिरिक्त जाति, निवास, आर्थिक गणना, साक्षरता सर्वे, पशु गणना, पोलिंग बूथ, मतदाता सूची, आयुष्मान कार्ड आदि कार्यों में संलग्न कर शिक्षकों के समय और ऊर्जा का दोहन कर अध्यापन कार्य से उन्हें वंचित रखा गया। शिक्षकों के साथ-साथ विद्यार्थियों के हितों के साथ भी अन्याय किया गया। शिक्षक का वास्तविक कार्य सिर्फ अध्यापन है। यही नहीं कई एनजीओ के द्वारा थोपे गए अनर्गल पद्धति एवं पैटर्न, पेचीदा तरीकों ने शिक्षकों को भ्रमित कर दिया है। शिक्षक किसी प्राइवेट नौकर की तरह इनके द्वारा बताए गए तरीकों और विधियों को डर-डरकर अपनी कक्षाओं में लागू कर रहे हैं। इसके लिए पर्याप्त समय देना पड़ता है, लेकिन शिक्षक नहीं दे पाते, क्योंकि और दूसरे कार्य भी विभाग के होते हैं जो उन्हें करने पड़ते हैं। पेंशन, जीपीएफ खाता, कटौती की जमा राशि, क्रमोन्नति जैसी अनेक समस्याएं वर्षों से लंबित हैं, इन्हें अनदेखा किया गया। रिटायर्ड और मृत हो चुके शिक्षकों को उनके खाते की जमा राशि भी नहीं दी गई। युक्तियुक्तकरण जिसमें बहुत सारे पद ही समाप्त हो जाएंगे, यह शिक्षकों के साथ घोर अन्याय होगा। शिक्षिका ने आगे कहा है कि एक शिक्षक देखा जाए तो सरकार का नौकर नहीं, सलाहकार होता है। आज स्थिति यह है कि यही शिक्षक अपने कार्य के लिए उच्च कार्यालयों का चक्कर लगाने, न्यायालय का दरवाजा खटखटाने, बार-बार ज्ञापन देने, आंदोलन, धरना-प्रदर्शन, सत्याग्रह करने मजबूर है। खाली हाथ सेवानिवृत्ति, निराश्रित जीवन, क्या यही शिक्षकों का सम्मान है? उन्होंने कहा है कि शासन की नीतियां शिक्षकों के हित में नहीं रहती हैं। अनर्गल आदेशों और उन नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने संगठनों की ओर से पहल होनी चाहिए, जो सिर्फ प्रतिनिधित्व करने वाले ही करते हैं। उनका मानना है कि शासन के हर आदेशों को हर शिक्षक को सोच-समझकर विचार करके ही मनाना चाहिए। शिक्षक समाज का सबसे बुद्धिजीवी और सजग व्यक्ति होता है, इसलिए संगठित होकर प्रतिक्रिया देने की जरूरत है। उन्होंने इस वर्ष शिक्षक दिवस समारोह का पुरजोर विरोध और बहिष्कार करने का आव्हान किया है। सिर्फ एक दिन सम्मान बाकी दिन शिक्षकों का शोषण और अपमान न्याय नहीं है। उन्होंने कहा है कि वे स्वयं इस वर्ष शिक्षक दिवस व हर सम्मान कार्यक्रम के पक्ष में नहीं हैं।