अंबिकापुर में 20 एकड़ भूमि की तलाश में लगा विवि प्रबंधन, 01 लाख डिजिटल व भौतिक किताबों का होगा संग्रहण
अंबिकापुर। शहर में 20 करोड़ की लागत से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आर्यावर्त सांस्कृतिक संग्रहालय एवं अनुसंधान केन्द्र के स्थापना की तैयारी संत गहिरा गुरू विश्वविद्यालय कर रहा है। इसे लेकर शुक्रवार को प्रतापपुर रोड में स्थित होटल पंचानन में नागपुर व रायपुर से पुरातत्व विशेषज्ञों ने मंथन किया। संग्रहालय में एक लाख डिजिटल व भौतिक किताबों का संग्रहण होगा। संग्रहालय एवं अनुसंधान केन्द्र की स्थापना के लिए शहर के आसपास 20 एकड़ भूमि की जरूरत है। इसे साकार करने के लिए गौशाला के पास भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित हो इस दिशा में प्रयास चल रहा है। देश की संस्कृति को अत्याधुनिक विज्ञान से जोड़ने की मंशा से इस संग्रहालय सह अनुसंधान केन्द्र का निर्माण कराया जाएगा। इससे अन्य देशों के छात्रों को भी यहां आने का मौका मिलेगा। इस दौरान संत गहिरा गुरू विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. एसपी त्रिपाठी ने संग्रहालय की अवधारणा पर प्रारंभिक प्रकाश डाला, जिसमें रायपुर व बिलासपुर विवि से आए विशेषज्ञ प्रोफेसरों की भी उपस्थिति रही। उन्होंने कहा विवि 15 वर्ष का सफर पूरा करते हुए शैशवावस्था में पहुंच चुका है। इसे देखते हुए एक बड़ी पहल की सोच को साकार करने हम सभी मिलकर कदम उठा रहे हैं। शहर के लोगों को विश्व स्तर का संग्रहालय व अनुसंधान केन्द्र मिले, इसके लिए सभी का सामूहिक प्रयास जरूरी है।
नागपुर से आए म्यूजिमय विशेषज्ञ डॉ. भुजंग बोपडे ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि अंबिकापुर में विश्व स्तरीय वर्चुअल और डिजिटल संग्रहालय एवं अनुसंधान केन्द्र की स्थापना का उद्देश्य नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केन्द्र में लाना, उनके प्रदर्शन एवं परंपराओं की वैज्ञानिकता पर अनुसंधान की सुविधा उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ राज्य में इस अवधारणा को लेकर एक भी संग्रहालय नहीं है। आर्यावर्त नाम से ही स्पष्ट है कि इस अनुसंधान केन्द्र का क्षेत्र अत्यंत व्यापक होगा। सामान्यत: लोगों में भ्रान्ति है कि वर्तमान का भारत ही आर्यावर्त है। उन्होंने कहा आज की आधुनिक शिक्षा प्रणाली में वैदिक साहित्य की भागीदारी नहीं के बराबर है। इसके कुशल शिक्षक, विद्वान भी सहज उपलबध नहीं हंै और न ही अध्ययन सामग्री। आज अध्ययन का मुख्य स्त्रोत गूगल या ए.आई हो गया है जो प्रमाणिक नहीं है। आधी-अधूरी जो जानकारी फीड की गई है वही विद्यार्थी मानते हैं। उनके पास काउंटर चेक करने के लिए साहित्य आसानी से उपलका नहीं है। इस कमी को दूर करने में यह केन्द्र सहायक सिद्ध होगा। इस केन्द्र में वैज्ञानिक पक्ष पर अनुसंधान किया जा सकेगा। उन्होंने कहा इस संग्रहालय की अवधारणा अत्यंत व्यापक है। कुल मिलाकर भारतीय जीवन विज्ञान पर आधारित प्राचीन से लेकर आधुनिक काल की सभी अवधारणाएं यहां समाहित रहेंगी। इस दौरान संत गहिरा गुरू विश्वविद्यालय के कुलसचिव एसपी त्रिपाठी, पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रो. नितेश कुमार मिश्रा, गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के प्रो. प्रवीण मिश्रा सहित अन्य उपस्थित थे।
रोजगार व आमदनी की उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी
म्युजियम विशेषज्ञ भुजंग बोपडे ने कहा कि अंबिकापुर में ऐसा संग्रहालय व अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया जाएगा, जो रोजगार के साथ ही क्षेत्र को विश्व स्तर पर ख्यातिलब्ध कराएगा। ऐसे केन्द्रों को शिक्षा से नहीं जोड़ने के कारण संग्रहालयों में चंद लोग ही बाते हैं। आर्यावर्त संग्रहालय आधुनिकता को परंपरा की ओर ले जाने का माध्यम होगा। इसके लिए एक माह में डीपीआर बनाकर दिया जाएगा, ताकि इसके निर्माण में लगने वाले बजट की स्थानीय और केन्द्र स्तर पर व्यवस्था सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा संग्रहालय के लिए एक लाख किताबें डिजिटल व वर्चुअल उनकी ओर से नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी। भुजंग बोपडे ने कहा कि लोगों के घर-घर में कई ऐसी पुरातन संपदाएं बिखरी पड़ी होंगी, जिसे वे इस संग्रहालय में फिजिकल, डिजिटल उपलब्ध करा सकते हैं। विवि के कुलसचिव डॉ. एसपी त्रिपाठी ने कहा कि संग्रहालय सह अनुसंधान केन्द्र की स्थापना का प्रपोजल सरगुजा कलेक्टर के समक्ष रखा जाएगा ताकि भूमि उपलब्धता, बजट जैसी आवश्यकताओं के लिए पहल हो सके।
अमेरिका, कैनेडा में भी बनाए संग्रहालय
भुजंग बोवडे ने कहा कि भारत में 1834 संग्रहालय हैं, विश्व का चौथा संग्रहालय हमने बनाया है। उनके द्वारा अमेरिका और कैनेडा भी संग्रहालय बनाए गए हैं। शिक्षा में रूचि निर्माण के लिए आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय की जरूरत है। उन्होंने कहा संग्रहालय लोगों के लिए रोजगार परख हो, रेवेन्यु का माध्यम बने, इसका तरीका पता नहीं होने से बने संग्रहालय धूल खा रहे हैं। बनाए गए संग्रहालयों की जर्जर स्थिति इसे बयां कर रही है।

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