सिविल इंजीनियरिंग ट्रेड में परफार्मेंस को लेकर प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त कॉलेज का यह हाल
एक दशक पूर्व मिले कंप्यूटर नहीं बदले गए, रिपेयरिंग करा प्रबंधन चला रहा काम
अंबिकापुर। सरकार जहां एक ओर नए पॉलिटेक्निक कॉलेजों को खोलने में रूचि ले रही है, वहीं लंबे समय से अंबिकापुर में संचालित पॉलिटेक्निक कॉलेज में बदलाव लाने की दिशा में किसी प्रकार की पहल नहीं करने से यहां अत्याधुनिक संसाधनों की कमी बनी हुई है। वह भी ऐसी स्थिति में जब इस पॉलिटेक्निक कॉलेज की गणना सिविल इंजीनियरिंग ट्रेड में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के परफार्मेंस को लेकर दुर्ग के बाद दूसरे पोजीशन पर होती हो। इधर विशेषकर मैकेनिकल ट्रेड से डिप्लोमा लेकर निकलने वाले छात्रों को काम की तलाश के दौरान बड़ी फैक्ट्रियों या कंपनियों में फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां ढाई दशक वर्ष पूर्व उपलब्ध कराए गए मैन्युअल उपकरण हैं। अत्याधुनिक डिजिटल उपकरणों की कमी छात्र के साथ प्रबंधन भी महसूस कर रहा है।
विदित हो कि अंबिकापुर शहर में पॉलीटेक्निक कॉलेज वर्ष 1983-84 में अस्तित्व में आया है। वर्तमान में यहां सिविल, मैकेनिक, इलेक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग के अलावा माइनिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीग्राफ, कंप्यूटर साइंस जैसे ट्रेड में लगभग 530 छात्र-छात्राएं शिक्षा ले रहे हैं। इनमें सिविल इंजीनियरिंग टॉप पर है। इसके बाद माइनिंग फिर इलेक्ट्रिक, कंप्यूटर साइंस के प्रति विद्यार्थियों की रूचि कुछ अधिक ही है। हैरत की बात यह है कि पॉलिटेक्निक कॉलेज में स्थापना के बाद से आज भी महत्वपूर्ण ट्रेड का संचालन 28 से 40 वर्ष पूर्व उपलब्ध कराए गए संसाधनों के भरोसे चल रहा है। कई मशीनरी तो ऐसी हैं, जिनके कलपुर्जे का पूरे भारत में कहीं भी मिल पाना मुश्किल है। लगभग 12 वर्ष पूर्व उपलब्ध कराए गए कंप्यूटरों में विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं। जरूरत पड़ने पर पॉलिटेक्निक कॉलेज प्रबंधन इनका मेंटनेंस कराता है, ताकि विद्यार्थियों की शिक्षा कंप्यूटर की कमी के कारण बाधित न हो। प्रबंधन की मानें तो संस्थान को 200 कंप्यूटरों की जरूरत है। ऐसे में नए संस्थान तो सरकार खोल रही है, लेकिन चार दशक से सरगुजा संभाग मुख्यालय में संचालित शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज के विद्यार्थियों की नींव आधुनिक व डिजिटल संसाधनों के बीच मजबूत हो, इसके लिए किसी प्रकार की रूचि नहीं ली गई, जिससे इन्हें डिजिटल मशीनरी से काम करने का ज्ञान नहीं मिल पा रहा है।
विकास निधि का नहीं हो रहा उपयोग
पॉलिटेक्निक कॉलेज के सूत्रों की मानें तो जिस प्रकार अन्य कॉलेजों में जनभागीदारी समिति है, जिसके माध्यम से जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, इसी प्रकार यहां विकास निधि है। विकास निधि डॉयरेक्टर रायपुर के अधीन होने से इसे खर्च करने का अधिकार यहां के प्राचार्य को नहीं है। बताया जा रहा है कि विकास निधि 20 वर्षों से अस्तित्व में है, जिसमें छात्रों से प्राप्त होने वाली राशि का अंश जाता है, जो एक करोड़ रुपये तक पहुंच गया होगा, लेकिन इस निधि का उपयोग कॉलेज की कमियों को दूर करने में नहीं किया गया है। ऐसे में यहां के हालात में तब्दीली नहीं आ पाई है।
ढहने के बाद नहीं बना बालक हॉस्टल
शासकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज के प्राचार्य आरजे पांडेय ने बताया कि लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को भवन मेंटनेंस का जिम्मा मिला है, उनकी अरूचि के कारण भवन के कई हिस्सों से स्लैब गिर रहे हैं। समय-समय पर मेंटनेंस करके भवन को चकाचक रखा जा सकता है। इस भवन का उपयोग चुनाव में समय में किया जाता है, जिससे कई महत्वपूर्ण काम यहां संपन्न होते हैं। छात्रों का सौ सीटर हॉस्टल भवन गिरने के बाद अभी तक नया भवन नहीं बन पाया है। ऐसे में कुछ छात्र लाइवलीहुड कॉलेज के हॉस्टल में रह रहे हैं, वहीं कई छात्र स्वयं की व्यवस्था बनाकर किराए के मकान में रहने विवश हैं। विकास निधि का समुचित उपयोग करके कई कमियों को दूर किया जा सकता है, जो पॉलिटेक्निक कॉलेज के लिए छात्रहित में होगा।
2013 के पहले कॉलेज को मिला कंप्यूटर
प्राचार्य बताते हैं कि कॉलेज को वर्ष 2013 के पहले कंप्यूटर मिला था, जिसे समय-समय पर मरम्मत करा काम चला रहे हैं। कंप्यूटर साइंस की शिक्षा कॉलेज में लगभग 120 छात्र ले रहे हैं, इसके अलावा अन्य ट्रेड के विद्यार्थियों को भी कंप्यूटर की जरूरत पड़ती है। ऐसे में कॉलेज को कम से कम 200 कंप्यूटर की दरकार है। नए संस्थानों में तो आधुनिक संसाधन आ जाएंगे, लेकिन समय के अनुसार पुराने पॉलिटेक्निक कॉलेजों में डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि यहां से डिप्लोमा लेकर जाने वाले विद्यार्थियों को जानकारी के अभाव में दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
मैन्युअल लेथ मशीन में सीख रहे काम
शहर के पॉलिटेक्निक कॉलेज में आज भी छात्र मैन्युअल लेथ मशीन से काम सीख रहे हैं। ऐसे में अगर ये यहां से मैकेनिकल के क्षेत्र में डिप्लोमा लेकर निकल भी जाएं तो उनका ज्ञान किसी काम का नहीं है। इस बात को संस्था के प्राचार्य भी स्वीकार कर रहे हैं। इनका कहना है लेथ की डिजिटल मशीनें आ गई हैं, जो कंप्यूटराइज्ड हैं। समय की मांग के अनुसार सीएनसी मशीन की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि यहां से पढ़कर निकलने वाले विद्यार्थियों को डिजिटल मशीन के संचालन का अतिरिक्त ज्ञान लेने मशक्कत न करनी पड़े। क्योंकि मैकेनिकल ट्रेड के विद्यार्थियों की मांग बड़े उद्योगों में होती है।
यहां से निकल चुके हैं कई होनहार
प्राचार्य आरजे पांडेय बताते हैं कि शहर के इस पॉलीटेक्निक कॉलेज से कई होनहार प्रतिभाएं निकल चुकी हैं, जो बड़े पदों पर सेवा दे रहे हैं। अंबिकापुर के अरूण पांडेय एडिशनल पीसीसीएफ के रूप में सेवा प्रदान कर रहे हैं। इनके अलावा शंकर लकड़ा रेलवे के स्टोर सेक्शन के हेड हैं, जो डीआरएम के रूप में रायपुर में सेवाएं दे रहे हैं। मनीष अवस्थी भी एडिशनल डीआरएम के पद पर रेलवे अहमदाबाद में पदस्थ हैं। ऐसे कॉलेज का और उत्थान हो, प्रतिभाएं निकलकर सामने आएं और प्रदेश व देश का नाम रोशन हो, इस सोच के साथ पॉलिटेक्निक कॉलेज को हाईटेक संसाधनों से जोड़ने की जरूरत है।