अंबिकापुर। शिक्षा विभाग के वरिष्ठ शिक्षक दोहरी नीति का दंश झेल रहे हैं। एक ओर प्रमोशन हेतु वरिष्ठता सूची में प्रथम नियुक्ति तिथि से इनकी गणना की जा रही है, दूसरी तरफ सेवानिवृत्ति पर पेंशन की पात्रता के लिए संविलियन तिथि से गणना की जा रही है। वर्ष 1998-99 में नियुक्त शिक्षकों के सेवा काल के बीस वर्षों को घटाकर इन्हें पेंशन हेतु अपात्र बनाने जैसी दोहरी नीति अपनाने से इनकी चिंता बढ़ गई है। लोकतांत्रिक तरीके से गुहार शासन से लगाने के बाद भी इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसे में न्याय पाने के लिए इन्होंने न्यायालय की ओर रूख किया है। इनकी एक सूत्रीय मांग प्रथम नियुक्ति तिथि से सेवा गणना को मानकर पेंशन की पात्रता सुनिश्चित करना है।
प्रदेश शिक्षक कल्याण संघ की जिला अध्यक्ष गौरी शर्मा ने बताया कि समान कार्य, समान पद, समान विभाग होने के बाद भी शिक्षा विभाग, आजाक में कनिष्ठ वर्ग के लिए पेंशन की पात्रता सुनिश्चित की गई है लेकिन वरिष्ठ के लिए नहीं। विभाग में संविलियन तिथि को आड़े लेकर अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। यह शासन-प्रशासन के द्वारा बनाई गई व्यवस्था को सवालों के घेरे में ला रहा है। शिक्षा विभाग के अनगिनत शालाओं में कार्यरत शिक्षकों की सेवानिवृत्ति के पश्चात दयनीय स्थिति है, जो सेवा में हैं उनका भी यही हश्र होगा। शून्य पेंशन पर सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों को आगे का जीवन निराश्रितों की भांति निर्वहन करना पड़ेगा। 1998-99 में सेवा की शुरुआत के साथ ही संघर्षरत शिक्षक अपने जीवन के सुनहरे 26 वर्ष शिक्षा विभाग को दे चुके हैं, बीस वर्ष सेवाकाल के बाद से ही पेंशन की पात्रता सुनिश्चित होती है, फिर भी पेंशन नहीं मिलना और शासकीय सेवाओं के मूलभूत अधिकारों को सुनिश्चित करने वाली नीतियों को तोड़ना, बदलना शिक्षकों के साथ अन्याय है। इसे लेकर संघ ने पूर्व में प्रांत स्तरीय बैठक कलेक्टोरेट के गार्डन में की थी। इसमें वर्ष 1998-99 में नियुक्त शिक्षकों की उनके प्रथम नियुक्ति तिथि से सेवा की गणना करते हुए पुरानी पेंशन एवं ग्रेच्युटी दिलाने हेतु विचार-विमर्श किया गया था। संघर्षपूर्ण जीवन जीने को मजबूर ये शिक्षक संगठित होकर आखिरी लड़ाई लड़ने न्यायालय की ओर रूख किए हैं। इनकी निगाह एक सूत्रीय मांग को संज्ञान में लेकर शासन-प्रशासन शिक्षक हित में कदम उठाए, इस पर भी टिकी है।

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