बस मालिकों की रीढ़ यात्रियों के साथ आए दिन होता है दुर्व्यवहार  

अंबिकापुर। सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर में स्थित अंतर्राज्यीय बस अड्डा से संचालित होने वाली बसों के एजेंट व अन्य कर्मचारियों की पहचान कर पाना काफी मुश्किल है। इनका आज पर्यंत किसी प्रकार का ड्रेस कोड पुलिस प्रशासन निर्धारित नहीं करा पाया है। पुलिस प्रशासन के द्वारा लोक मार्ग में संचालित वाहनों के चालकों की पहचान के लिए बड़ी पहल करते हुए ऑटो चालकों को गणवेश में रहने निर्देशित किया गया है। इसका सकारात्मक परिणाम भी सामने आ चुका है। महिला की शिकायत पर एक ऑटो चालक पर कार्रवाई भी पुलिस कर चुकी है।
शहर के अंतर्राज्यीय बस अड्डा से रोजाना सैकड़ों चार सौ से अधिक बसों का आना-जाना होता है, लेकिन यहां के चालक, परिचालक व एजेंटों की पहचान कर पाना यात्रियों के लिए आसान नहीं है। सादे कपड़ों में एजेंट टिकट बुक पकड़े सवारियों पर गिद्ध नजर लगाए रहते हैं। सवारी जब तक टिकट न कटा ले, तब तक वे उन पर टकटकी लगी रहती है। कई बार यात्रियों को यह पता ही नहीं चल पाता है कि उन्होंने जिस एजेंट के माध्यम से यात्रा के लिए टिकट प्राप्त किया है, वह किस बस का है, सही है या फर्जी है। कई मार्गों में संचालित बसों में यात्रा करने वाले यात्रियों को एजेंटों के द्वारा बिना बस के नाम की पर्ची टिकट के नाम पर थमा दी जाती है। यही नहीं किसी बस में यात्रियों की सुविधा के लिए रेट लिस्ट लगा देखने को नहीं मिलेगा, जिससे पता चल सके कि उन्हें जहां तक जाना है, उसका कितना किराया लगेगा। ऐसे में कई बार किराए को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित हो जाती है। विवाद करने वाले एजेंट, कंडेक्टर की सामान्यजन इसलिए पहचान नहीं कर पाते हैं क्योंकि न तो इनका कोई ड्रेस कोड रहता है और न ही नेमप्लेट लगाकर ये रखते हैं, जिससे इनकी तात्कालिक पहचान हो सके और किसी यात्री के साथ होने वाली अभद्रता की जानकारी पुलिस या बस ऑनर तक पहुंच सके। बस संचालकों के लिए यात्री महत्वपूर्ण हैं। यात्रियों को सफर के दौरान दिक्कत और जलालत झेलनी पड़े, तो यात्री सेवा के लिए बस संचालन का ध्येय कैसे पूरा होगा। ऐसे हालातों को देखते हुए पुलिस प्रशासन को बस एजेंटों, कंडेक्टरों के व्यवहार में बदलाव लाने व ड्रेस कोड की पहल करनी चाहिए, ताकि यात्री या सामान्यजन किसी प्रकार की दिक्कत होने पर सूचनाओं का त्वरित आदान-प्रदान पुलिस तक कर सकें। इससे एजेंटी के आड़ में चल रही मनमानी पर रोक लगेगी, वहीं इनके द्वारा की जाने वाली हुज्जतबाजी पर भी विराम लगेगा।
आईएएस के स्वजन हो चुके हैं अभद्रता का शिकार
यात्री बस के कर्मचारियों की अभद्रता और अमर्यादित व्यवहार का सामना पूर्व में सरगुजा जिला में पदस्थ एक आईएएस के स्वजन कर चुके हैं। आईएएस अफसर चाहते तो पुलिस को जानकारी देकर व्हीआईपी यात्रा की सुविधा सुनिश्चित कर सकते थे, लेकिन उन्होंने यात्रा के लिए बकायदा टिकट कटवाकर स्वजनों को रवाना किया था। इसकी जानकारी बस स्टैंड में 24 घंटे तैनात रहने वाली पुलिस को भी नहीं थी। आईएएस के स्वजन गंतव्य तक पहुंच पाते, इसके पहले ही उन्हें बस के कर्मचारी की अभद्रता का सामना करना पड़ा। इसकी जानकारी उन्होंने सरगुजा में पदस्थ आईएएस अफसर को दी, इसके बाद नौबत हाथ-पांव जोड़ने की बन गई थी।
ऑटो वाहनों में नंबरिंग से हुआ यह फायदा
ऑटो वाहन में नंबरिंग करके चालक का नाम, मोबाइल नंबर के अलावा पुलिस के हेल्पलाइन नंबर जैसे ब्यौरा अंकित कराने से ऑटो में सवार होने वाले महिला-पुरूषों को यह पता रहता है कि वे जिस ऑटो में सफर कर रहे हैं, उसका चालक कौन है। ऐसे में सवारी सुरक्षा की दृष्टि से ऑटो में अंकित की गई जानकारी का फोटो खींचकर अपने परिचित या स्वजन को भेज सकते हैं, जिससे उन्हें पता रहे कि घर से कहीं जाने के लिए निकले या घर आने के लिए निकले स्वजन, बहन-बेटी किस ऑटो में सवार होकर रवाना हुए हैं। अगर इनके गंतव्य तक पहुंचने में विलंब की स्थिति बनती है या मोबाइल से संपर्क नहीं होने पर संदेहजनक परिस्थितियां बनने पर डायरेक्ट ऑटो चालक के नंबर पर संपर्क किया जा सकता है या फिर पुलिस को सूचना देकर त्वरित मदद ली जा सकती है।
आए दिन बनती है विवाद/राजीनामा की स्थिति
अंतर्राज्यीय बस अड्डा में रोजाना यात्रियों की भारी भीड़ रहती है। इसे देखते हुए शंाति व्यवस्था बनाए रखने बस स्टैंड में पुलिस सहायता केंद्र की स्थापना की गई है। किसी प्रकार की सूचना पर मौके पर पुलिस त्वरित पहुंच जाती है। असामाजिक गतिविधियों में लोगों पर भी गाज गिर चुकी है। बताया जा रहा है कि बस स्टैंड में तफरी करने वाले एजेंटों के ड्रेस कोड की पहल पुलिस ने की थी, इसके बाद यहां के कुछ पुलिस कर्मचारियों का फेरबदल हो गया और एजेंटों की तूती पूर्ववत बोल रही है। कई बार अनाधिकृत लोग भी इस मौके का फायदा उठाकर यात्रियों को ऐसा टिकट थमाकर निकल लेते हैं, जिसमें किसी बस का नाम तक नहीं रहता है। कुछ यात्रियों को तो टिकट कटाने के बाद बस में सफर करने के दौरान पता चला है कि वे ठगी का शिकार हो गए हैं। हालांकि कम राशि की चपत लगने के कारण ऐसे मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पाते हैं।

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